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धर्म के प्रकार और नये धार्मिक प्रश्न
आज तक लोग धर्म के दो विभाग करते थे । वशमूलक और सिद्धान्तभूलक । हिन्दू, पारसी और यहूदियो के धर्म वशगत धर्म है। यहूदी जाति मै जन्मा हुया मनुष्य ही यहूदी हो सकता है। हम लोग उस धर्म मे प्रवेश नही कर सकते । पारसियो का धर्म भी ऐसा ही है। आदमी जन्म से ही पारसी धर्मी हो सकता है। हिन्दू धर्म प्रधानतया वैसा ही है। किन्तु हिन्दूधर्म की चन्द शाखाएँ ऐसी है जो धर्मान्तर के द्वारा लोगो को अपने में ले सकती है। आर्यसमाज, ब्राह्मसमाज और वौद्धधर्म इस प्रकार के है । कोई अग्रेज या चीनी आदमी भी आर्यसमाज में दाखिल हो सकता है । और फिर हम ऐसे आदमी को हिन्दू कहने के लिए बाध्य हो जाते है । बौद्धो का ऐसा ही है। कोई भी हिन्दू के बौद्ध होने पर उसका हिन्दुत्व मिटता नही । कोई जर्मन या अग्रेज जव वौद्ध धर्म में आता है-ऐसे कई उदाहरण है-तब उसे हम जरूर हिन्दू ही कहेगे । किन्तु बौद्ध धर्म दुनिया मे इतना फैला हुआ है कि वर्मा, सिलोन, थाइड, श्याम, कम्बोडिया, चीन और जापान के बौद्वो को शायद हम हिन्दू नहीं कहेगे। जव कि नेपाल और भूटान के बौद्ध लोग हमारे मन मे हिन्दू ही है और मै तो तिब्बत के वौद्धो को भी हिन्दू ही कहूँगा।
जाति या वश के ऊपर निर्भर रहने वाले इन धर्मों को अंग्रेजी में 'ethnic religion' कहते है।
इसके विपरीत जो धर्म सिद्धान्त-समूह, धर्म-सस्थापक और धर्म-ग्रन्थ पर आधार रखते है उनको कहा जाता है creedal religion | दुनिया के सब लोगो को वे आमत्रण देते है कि तुम्हारा उद्धार हमारे ही द्वारा होगा, हमे स्वीकार करो। बुद्ध भगवान् ने अपने धर्म को 'एहि पश्येक' धर्म कहा है । 'आयओं और देखो। जच जाय तो स्वीकार करो।' वौद्ध-धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम इस प्रकार के धर्म है।
स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका जाकर हिन्दू धर्म का नही किन्तु वेदान्त धर्म का प्रचार किया। वेदान्त के सिद्धान्त जिसे मान्य है बह