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धर्म के प्रकार और नये धार्मिक प्रश्न
वेदान्ती हो सकता है। अमेरिका मे इस वेदान्त का प्रचार हुआ । लेकिन उसका कोई अलग पन्थ नही हुआ ।
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जैन धर्म हिन्दू धर्म का ही एक रूप है । जैन समाज हिन्दू समाज के चाहर नही है । जैन संस्कृति हिन्दू संस्कृति का अविभाज्य अंग है । हिन्दू समाज अमर जैन संस्कृति को छोड देगा तो उसे अर्धाङ्ग याने लकवा होगा ।
जैन मत का प्रचार अकसर भारत मे ही हुआ । इसलिये वह सिद्धान्तनिष्ठ होते हुए भी वस्तुत वशनिष्ठ ही रहा है। दुनिया के किसी भी देश का, किसी भी Race यानी वश का आदमी, तीर्थकरो की नसीहत को स्वीकार करके जैन बन सकता है । लेकिन वैसा प्रयत्न किसी ने किया नही है । सिक्खो का भी ऐसा ही है ।
धर्मो का यह जो पुराना द्विविध वर्गीकरण है, उसका मैंने यहाँ तक वर्णन किया । पश्चिम के लोगो को ऐसे वर्गीकरण पसन्द होते है । लेकिन आज मैं एक नये ही ढंग से धर्मो का वर्गीकरण करना चाहता हूँ । मेरा वर्गीकरण त्रिविध है ।
पहले वर्ग मे ऐसे सच धर्म आते हैं जो ईश्वर केन्द्रिक है। यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, हमारा वैदिक धर्म, वैष्णव धर्म, ब्राह्म धर्म ये सब ईश्वर केन्द्रिक है । दूसरा वर्ग है आत्म केन्द्रिक धर्म । इसका उत्तम नमूना है जैन धर्म | इस सृष्टि का सर्जनहार कौन है ? इसका नियन्ता तो कोई होगा ही ऐसी तर्क-प्रणाली मे वे फँसते नही । वे कहते है कि आत्मा है । उसकी शक्ति श्रमर्यादित है । तपस्या के द्वारा यह शक्ति बढ़ाकर मनुष्य को अपना उद्धार करना है । यह है इस धर्म की मान्यता | आत्मशक्ति बढाने का तरीका है अहिसा तप और ज्ञान । इसी से मनुष्य को केवलज्ञान प्राप्त होता है और वह मुक्त हो जाता है ।
धर्मो का तीसरा प्रकार है
जीवन - केन्द्रिक | इस वर्ग के धर्म आत्मा को या परमात्मा को नही मानते । वे मानते है जीवन को । व्यष्टि और समष्टि के सस्कार को । उनका कहना है कि सम्यक् ज्ञान और चारित्य के _द्वारा मनुष्य अपने दोषो को क्षीण करता है और निर्वाण को प्राप्त कर सकता है ।