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महावीर का जीवन संदेश
चाहिये । सब की आत्मा एक है । सब राष्ट्र, सब जातियाँ, सव महावश (रेसेज) एक ही है । इनमे, हम द्वैत चलायेगे तो मानव जाति का जीवन विफल होगा । गोरे और काले, लाल और पीले और हमारे जैसे गेहुएँ सव एक ही आदि मानव की सन्तान है । रग-भेद, भाषा-भेद, धर्म और देश-भेद से हमारा अद्वैत, हमारा ऐक्य टूट नही सकता । यह है वेदान्त धर्म की सीख । कोई शुद्ध पुण्यवान नहीं, कोई शुद्ध पापी नही, सारी दुनिया सद् और असद् से भरी हुई है, और इसलिये उसमे अद्वैत यानी ऐक्य है । यह है सच्ची दृष्टि ।
कुछ दिन हुये मैं भोपाल, भेलसा और साची की ओर गया था। भौगोलिक दृष्टि से यह प्रदेश भारत के केन्द्र मे है । बौद्ध धर्म के समर्थ प्रचारक सारपुत्त ओर मोग्गलान के कारण यह एक तीर्थ स्थान है ही। भगवान् महावीर के परम कल्याणमय उपदेश का प्रचार इस प्रदेश मे कम नही हुआ है ।
और, वेदान्त का प्रचार तो भारतवर्ष के जरै-जरे मे पहुंच गया है। भारतवर्ष के हृदय के समान उस स्थान को देखकर मेरे मन में यह समन्वय की नयी 'प्रस्थान-त्रयी' विशेष रूप से स्पष्ट हुई । अनेकान्त का सन्देशा समझने वाले लोगो को चाहिये कि वे इस स्थान पर ऐसी एक प्रचण्ड प्रवृत्ति बो दे कि जिमका प्रकाश सारे भारत मे ही नही, दशो दिशामो मे फैल जाये । आज का युग समन्वय का युग है । महावीर की जयन्ती के दिन हम सकल्प करे कि बौद्ध, जैन और वेदान्त इस त्रिमूर्ति की हम अपनी सगम-सस्कृति में स्थापना करेंगे और भगवान् महावीर की कृपा से सर्व-धर्म-समन्वय का भी अनुशीलन करेंगे। २२-४-५६