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महावीर का जीवन सदेश यह न तो खुदा ने अपने नबियो से कह रखा है और न अपने फरिश्तो से । भविष्य-सम्बन्धी ज्ञान खुदा ने अपने पास ही रखा है। कहने का मतलव यह है कि सर्वोच्च मनुष्य को भविष्य का ब्यौरेवार ज्ञान प्राप्त नही हो सकता। तव त्रिकालज्ञ का अर्थ क्या है ?
जो मनुष्य दीर्घकालीन इतिहास के अध्ययन से भूतकाल के स्वरूप को अच्छी तरह जानता है और लोक-स्थिति का सूक्ष्म और व्यापक निरीक्षण करने के फलस्वरूप वर्तमान काल की वस्तु-स्थिति से पूर्ण परिचित होता है, उसे यदि उसने शास्त्रीय-वृत्ति का विकास अपने भीतर किया हो तो-समाज शास्त्र की रचना करना आता है और इस शास्त्र के बल पर वह आसानी से यह समझ सकता है कि भविष्य का प्रवाह-विचार प्रवाह तथा घटना प्रवाह-किस दिशा मे बहेगा। ऐसे शास्त्रीय दृष्टि वाले मनुष्य को हम त्रिकालज्ञ कहते है । प्रत्येक देश के और प्रत्येक युग के सर्वोच्च नेता इस प्रकार कम या अधिक मात्रा मे त्रिकालज्ञ होते ही है। और जो लोग इम अर्थ मे त्रिकालज्ञ रहे है, वे ही समाज की नौका को जीवन-सागर में भली-भांति चला सके है।
ऐसे मनुष्य मे एक विशिष्ट शक्ति की आवश्यकता होती है । वह है भविष्य के आदर्श की झांकी करने की शक्ति । जिस प्रकार जहाज का कप्तान अपने पास के नक्शे के अनुसार जहाज को चलाता है, जिस प्रकार मकान बनाने वाले लोग अपने नक्शे के अनुसार मकान की सारी रचना करते है, जिस प्रकार महाकाव्य का कोई कवि निश्चित किये हुए उद्देश्य के अनुसार अपने काव्य का विस्तार करता है, उसी प्रकार समाज की धुरा को धारण करने वाला, समाज का नेता अपने मन मे निश्चित किये हुए आदर्ण की दिशा मे समाज को नि शक भाव से ले जाता है । उसके सामने अपने आदर्श का चित्र जितना स्पष्ट और जीवत होगा, उतने ही विश्वास के माथ वह समाज का मार्गदर्शन करेगा । वुद्ध और महावीर ऐसे ही समाज-मुधारक थे, इसीलिये वे अपने पीछे इतनी समर्थ सस्कृति छोड गये हैं।
लेकिन बाद के लोग धर्म के रहस्य को भूलकर केवल इढि और अपनी प्रतिष्ठा मे चिपटे रहते हैं । अहिमा-धर्म की मर्वत्र विजय देने की इच्छा रखने वाले जैनो मे जब धर्म के नाम पर मार-पीट होती है तब धर्म कलकित होता है। शम-दम का उपदेश करने वाले प्राचार्य जब प्रोधित होते है और किमी का मर्वनाश करने की प्रतिजा लेते है, तब जिम धर्म के