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महावीर का अतुल
५ जिन्नी ९४२८. सं.
आज वनविहार को गया था । वन्त के हम में स मस्त थे। बड़भर को मैं अपने को ि
लग था कितने में मेरे रंग में भं । होगया | मेरी नजर एक
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घायल आदमी पर पड़ी के सिर से खून पैरोंमें भी बाच थे, पीठ सूज गई थी।
वही
गता आरहा था । अन्त में उसकी शक्ति ने जब टेडिय मेरे क्रीडावन के फाटक के एक किनारे थककर गिर पड़ा। दूसरे ही क्षण में उसके पास था ।
पूछने पर मालूम हुआ उसका नाम शि चांडाल है कहीं वेद पढ़ा जारहा था. इस
यह चुनने
की इच्छा होगई और यह बाहर यहा बा सुनने। :: चांडाल के कान में वेद के अक्षर चले जाये
पर
माना गया कि उसका सिर फोड़ना और
तो
श्री
प
करना कमसे कम प्रायान समा गयी कहा कि बहुत से ब्राह्मणों की प्रायश्चित में चांडाल के कानमें पिघलाकर पीना हा मा चाहिये । पर उनने दया करके सिर से पैर मार कर उसे घायल करके ही छोड़ दिया !
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इससे
मनुष्यता के इस अपमान कर बढ़कर पैशाविकता की और क्या कल्पना की जानी है ? वेद, इन मोघजीवी पंडितों की रोटियां 'दूसरा वेद जानकर रोटियन
लिये फरूर से करूर बनजाने में नम
कार है पर उसी ज्ञान से से भोपजीवी
त
रखना चाहते हैं ? ये मनुष्य के
निरसन होगा
ही चाहिये। मुझे इसके लिये दोष तैयार कर ऐस