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महावीर का अन्तस्थल
बड़ा आश्चर्य हुआ मैंने उससे पूछा- क्या तुमने दे
•
स्वर्ग जाते हैं ?
उसने कहा- नहीं देखा तो क्या हुआ ? छेद मे ओह ! वे मृतक बेद ! युग कहां से
और ये मुर्दे बनकर भी उससे विटे वह सुनने को तैयार न था । तब मैंने इतना ही में मरने से पशु स्वर्ग जाते हैं तब तुम भी तुम भी स्वर्ग में पहुँच जाते और पशुओं से पाजाते ।
(12
हुए । पर सम
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यदि
न
वी
की
इसका उसने कुछ भी उत्तर नदिया करके चला गया, उत्तर देता भी क्या ?
ऐसा मालूम होता है कि अगर मनुष्य को मनुष्य सुनाना हैं तो वेदों से उसका पिंड छुड़ाना ही पड़ेगा | मनुष्य से सिखाना पड़ेगा कि वह शास्त्र का अपनी सेव परखे, द्रव्य क्षेत्र काल भाव का विचार करे। एक युग का दूसरे युग में काम नहीं देसकता। धाज में शास्त्रमूढ़ता से और करता से मनुष्य को से १२ चिंगा २९२७ से.
उनकी
जन
मे
ने
आज मैं रथ में बैठा हुआ जाता था कि देखी। पृढ़ने पर मालूम हुआ कि के हो होगया है । झगड़ा था छैन और अद्वैत का अद्वैतवादी पण्डित की पत्नी से व्यभिदार किया था.पर भी वह कह रहा था कि इसमें पाप क्या हुआ अपना क्या और पराश था सब एक है। इस युक्ति का उत्तर दूसरे का सिर फोड़कर दिया गया था। और कहा गया था कि हैतवाद में सात्मा और
दमे
भ