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महावीर का अन्तस्तल
कायर, तथा श्रीमन्त लोग देववादी नियतिवादी या आजीवक वनजाते हैं ।
कहने को तो यह कह दिया करते हैं कि इससे हमें शांति मिलती है, और सचमुच उन्हें शांति का अनुभव होता है, यही शांति खरीदने के लिये वे दैववादियों या नियतिवादियों को पूजा भेंट दिया करते है । पर यह शांति नहीं है जड़ता है । जीवन का घोर पतन है ।
एक मनुष्य मरकर अगर झाड़ होजाय तो उसकी संवेदन शक्ति घट जायगी, उसे जीने मरने की, कर्तव्य अकर्तव्य की. कोई चिन्ता न रहेंगी। कहा जासकता है कि मनुष्य मरकर वृक्ष होगया तो बड़ी शांति का अनुभव हुआ, पर क्या इस जड़ता को शांति कह सकते हैं ?
एक मनुष्य मद्य पीकर नशे में चूर होजाय, तो उसे भी कोई चिन्ता न रहेगी, और वह कहेगा कि मुझे बड़ी शांति का अनुभव हुआ, पर क्या यह जड़ता शांति है ?
मनुष्य अपने उत्तरदायित्व को भूल जाय, अपने पापभय या पतनमय जीवन में भी शांति सन्तोष का अनुभव करने लगे तो उसके लिये यह आशीर्वाद की वात नहीं, किंतु वड़े से बड़े अभिशाप की बात होगी । देववाद या नियतिवाद का प्रचार करनेवाले लोग मनुष्यों पर इसी तरह अभिशाप की वर्षा कर रहे है । भले ही ये इसके लिये कैसा भी अच्छा नाम क्यों न दे देते हाँ ।
बेचारा शव्दालपुत्र इसी देववाद का शिकार होकर आजीवक बन गया है । मैंने सोचा - यह महर्द्धिक है अगर इसका उद्धार होजाय तो इसके साथ बहुतों का उद्धार होजायगा ।