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महावीर का अन्तस्तल
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इसमें सन्देह नहीं कि शब्दालपुत्र भन्न है । वह मेरे पास अन से ही आया, फिर भी उसने भट्टता दिखाई और अपनी भाण्डशाला में ठहरने का मुझे निमन्त्रण दिया । और मैंने भी उसे स्वीकार कर लिया ।
भाण्डशाला में सैकडों लोग काम करते थे । कोई मिट्टी लाता था, कोई साफ करता था, कोई लानता था, कोई चक्रपर घुमा घुमाकर भाण्ड बना रहा था, कोई सुखाने के लिये रख रहा था | शब्दालपुत्र अन सत्र का निरीक्षण कर रहा था । मैंने अससे कहा - शब्दालपुत्र. तुम्हारे यहाँ जो इतने भाण्ड बनते हैं वे सब तुम्हारे प्रयत्न से बनते हैं या आपसे आप वनजाते हैं । आखिर इतने आरम्भ समारम्भ का उत्तरदायित्व किस पर ?
शब्दालपुत्र ने शुक्र की तरह रटा हुआ पाठ सुना दियासव नियतिवल से बनते है भगवन् ! सब पदार्थ नियत स्वभाव हैं, उसमें निमित्त क्या कर सकता है ? निमित्त आखिर पर है, पर अगर स्त्र में कुछ करने लगे, घुसने लगे, तो पदार्थ का स्वभाव ही नष्ट होजाय अर्थात् पदार्थ ही न रहे । इसलिये जो कुछ होता है वह अपने स्वभाव के अनुसार स्वयं नियतियल से होता है, पुरुष प्रयत्न या परानमित्त से कुछ नहीं होता । इसलिये इस आरम्भ समारंभ का उत्तरदायित्व किसी पर नहीं है । या उन्हीं पदार्थों पर है जिनमें वह परिवर्तन होरहा है, जो उन क्रियाओं के उपादान कारण हैं ।
मैं- अगर कोई पुरुष लगुड़ लेकर ये सब भाण्ड फोड़ने लगे, या तुम्हारी स्त्री के ऊपर बलात्कार करने लगे तो सच कहो शव्दालपुत्र, क्या तुम इन कुकार्यों का उत्तरदायित्व अपर न डालकर, नियति पर डालोगे ? उसे किसी तरह का दंड न दोगे, इसे नियति कार्य मानकर शांत रहोगे ?