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महावीर का अन्तस्तल
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बिताने के लिये वैशाली गया। वहां से उत्तर विदेह की तरफ जाकर मिथिला काकन्दी आदि की ओर विहार किया, काकन्दी में धन्य सुनक्षत्र आदि को दीक्षा दी। उसके बाद पश्चिम की ओर विहार कर श्रावस्ती आदि होता हुआ लौटकर पोलासपुर आया । वहां शब्दालपुत्र नाम का एक श्रीमन्त कुम्हार रहता है, यह भाजीविकोपासक वनगया है। मेरे साथ रहते रहते जीवन के अधूरे अध्ययन से गोशाल में जो देववाद समागया था झुसी के आधार से इसने एक तीर्थ खड़ा कर लिया है । और उस तीर्थ में बड़े बड़े श्रीमन्त भी सम्मिलित होगये हैं। देववाद में वृथा आत्मसन्तोप को पर्याप्त अवकाश होने से हर तरह के मनुप्य चले जाते हैं । कायर और परिवही लोग तो विशेष रूप में चले जाते हैं । कायरों को अपनी कायरता छिपाने का, और बहुपरिग्रहियों को अपनी वैधानिक लूट छिपाने का, दैववाद अच्छा सहारा है।
कायर तो यह सोचते हैं कि मनुष्य के हाथ में है ही क्या, जो कुछ भाग्य में बदा है और पहिले से नियत है वह अवश्य होगा इसलिये कुछ करने धरने की बात व्यर्थ है । इस. प्रकार कायरों को अपनी कायरता की कोई लज्जा नहीं रहती।
श्रीमन्त लोग धन के लिये जो पाप करते हैं, उसके लिये भी वे देववाद के कारण लज्जित नहीं होते । वे सोचते हैं, जो कुछ होरहा है उल में अपना क्या अपराध ? यह सब तो पहिले से नियत था । हजार पुरुषार्थ करके भी में इसे बदल नहीं सकता था। तब जो हुआ या होरहा है उसका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर क्या है ?
इसप्रकार देवबाद जीवन सुधार का शत्रु है और पापियों को पाप छिपाने के लिये सहारा है । इसलिये बहुत से