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महावीर का अन्तस्तल
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wnwr ठीक है।
मैं--तब देखो! क्रोध मान आदि या स्मृति आदि अमूतिक आत्मा के गुण या पर्याये हैं, और उनके उपर मूर्तिक का असर होता है। किसी मूर्तिक पदार्थ को देखकर स्मृति होजाती है या क्रोध मान आदि पैदा होजाते हैं। इतना ही नहीं, मद्यपान आदि से अनेक विपरिणतियाँ होने लगती हैं इससे सिद्ध है कि आत्मिक गुणों पर भौतिक पदार्थ या उनके गुण प्रभाव डालते हैं तत्र कर्म भी प्रभाव डालते हों इसमें क्या आपत्ति है ?
आग्निभूति-अद्भुत है प्रभु आपका तर्क ! अभूतपूर्व है प्रभु आपका तर्क ! मेरा सन्देह दूर होगया । अब आप मुझे अपना शिष्य समझे।
इतने में वायुभुति ने कहा-मैं आर्य इन्द्रभूति अग्निभूति का भाई है प्रभु, मुझे भी आप अपना शिष्य समझे।
मेरा सन्देह तो दोनों आर्यों के सन्देह के साथ ही दर होगया। मैं समझता था कि आत्मा तो शरीर के भीतर पैदा होने वाला एक बुलबुला है जो पैदा होता है और नष्ट होजाता है। पर जब प्रभु ने सत्तर्क के द्वारा आत्मा सिद्ध कर दिया तब बुलबुले का अपमान स्वयं मिथ्या होगया । - इसके बाद व्यक्त ने कहा-परन्तु प्रभु, अभी मेरा समा. धान शंय है । आत्मा पंचभूतों से भिन्न है या अभिन्न यह प्रश्न मेरे सामने नहीं है। मैं कहता हूं यह सव शून्य है, कल्पना है, स्वम है।
___मैंने कहा-व्यक्त, अगर तुम्हें कभी ऐसा स्वप्न आये कि तुम्हारे घर में आग लग गई है और घर जलकर राख होगया है तब भी तुम उसघर से पड़े पड़े स्वप्न देखसकते हो, लेकिन जागृतावस्था में तुम देखो कि घर जलकर राख होगया है तब