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___ महावीर का अन्तस्तल
धनों का प्रत्यक्ष नहीं कर सकते आग्नभाते, जिनसे यह आत्मा बंधा है, पर अनुमान भी कम विश्वसनीय नहीं होता, क्योंकि वह निश्चित तर्क पर खड़ा होता है, और उस अनुमान से तुम सरलता से जान सकते हो कि आत्मा कर्मबन्धनों से बंधा है। तुम्हारे सन्देह के दो रूप हैं। एक तो यह कि आत्मा बंधा है इसका क्या प्रमाण ? दूसरा यह कि अमूर्तिक पर मूर्तिक का प्रभाव कैसे पड़ सकता है ? पहिले पहिली बात लूं। यह बात तो निश्चित है कि बिना कारण-भेद के कार्यभेद नहीं होता। इस बात को सिद्ध करने की तो जरूरत नहीं ? ।
अग्निभूति-जी नहीं। यह तो सर्वमान्य सिद्धांत है।
मैं तब तुम यह तो देख ही रहे हो कि सब प्राणी एक समान नहीं है। इस विषमता का कारण कोई ऐसा पदार्थ होना चाहिये जो आत्मा से भिन्न हो । मूल में सब जीव समान हैं इसलिये जीव से भिन्न कोई पदार्थ मिले बिना उनमें विषमता नहीं आसकती और जीव से भिन्न जो पदार्थ जीव के साथ लगा हुआ है वही कर्म-न्धन है। इस अकाट्य अनुमान के सामने कर्म बन्धन में सन्देह कैसे रह सकता है ?
आग्नभूति-वास्तव में नहीं रह सकता। फिर भी इतना सन्देह तो है ही, कि अमूर्तिक पदार्थ के ऊपर मूर्तिक का प्रभाव कैसे पड़ सकता है?
मैं-अमूर्तिक में रूप नहीं होता इसलिये उसपर क्या प्रभाव पड़ा क्या नहीं पड़ा यह दिख नहीं सकता, किंतु अमू. र्तिक के गुणों का हमें स्वसंवेदन प्रत्यक्ष तो है ही, यदि उन गुणों पर भौतिक के प्रभाव का पता लगजाय तर यह समझने में कोई बाधा न रहेगी कि मूर्तिक द्रव्य का अनूर्तिक गुणों पर प्रभाव पड़ता है।
अग्निभूति-जी हां! निर्णय का यह तरीका बिलकुल