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महावीर का अन्तस्तल
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भी क्या तुम घर में पड़े रह सकते हो ? .. व्यक्त- सो कैसे होगा प्रभु ! १. म- जब स्वप्न भी कल्पना है और जागृतावस्था की बटना भी कल्पना है तब इतना अन्तर क्यों होना चाहिये ? अगर अन्तर है तो वह अन्तर असत और सत के सिवाय और क्या है ?
व्यक्त-मेरा सन्देह कुछ कुछ दूर हो रहा है प्रभु ।
मैं- पूरा दूर होजायगा व्यक्त, तनिक और विचार करो कि जब सारे अनुभव कल्पना है, निराधार हैं, तो सब को एक सरीखे अनुभव क्यों नहीं होते ? सब प्राणियों के भिन्न भिन्न अनुभव क्यों होते हैं ?
व्यक्त-निमित्त उपादान भिन्न भिन्न होने से अनुभव भी भिन्न भिन्न होते हैं प्रभु !
मैं-पर जब सब निमित्त कल्पना है. सारे उपादान कल्पना हैं, तब इन निमित्तों और झुपादानों में भेद कैसे हुआ व्यक्त ! सत का अवलम्बन लिये विना असतं भी भिन्न भिन्न कैसे होगा?
व्यक्त नहीं होगा प्रभु. कहीं न कहीं सत् का.अवलम्बन लेना ही होगा । अब मेरा सन्देह पूरी तरह दूर हो गया । अब प्रभु मुझे अपना शिष्य समझें । - इसके बाद सुधर्म ने कहा में आर्य व्यक्त का भाई हूं। प्रभु मुझे सत् असत् या जीव के विषय में कोई सन्देह नहीं है। पर यह मेरी समझ में नहीं आता कि एक जीव मरकर दूसरी योनि में कैसे पैदा होसकता है ? अगर” यत्र के बीज से व्रीहि (धान) नहीं पैदा होसकता तो मनुष्य का आत्मा पशु या पशु