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महावीर का अन्तस्तल
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- ३८- श्रमण विरोध .. . . i.:::. ५ जिन्नी ६४३६ इ. सं. __ आजकल श्रमण और ब्राह्मणों का विरोध अत्यग्र होरहा ।
है। ब्राह्मण संस्था जीर्ण होगइ है समाज सेवा का जो कुछ काये वह कर सकती थी कर चुकी । जीविका की दाष्ट से कुछ क्रिया: । 'कांड कराने के सिवाय उसका कोई कार्य नहीं रहगया है। सदा-. : चार सेवा त्याग का कोई कार्यक्रम इनके पास नहीं है, समाज... की दशा को सुधारने की बात भी ये नहीं करते । समाज साधार: : 'णतः रूढ़िका अपासक होता है उसकी इस दुरलता और मूदता. का उपयोग कर ब्राह्मण लोग दिन पूरे कर रहे हैं। श्रमण लोग . क्रान्तिकारी हैं, सुधारक हैं विचारक हैं तपस्वी है त्यागी हैं, एक .. नये संसार का निर्माण करना चाहते हैं। जनता कई भागों में विभक्त है । कुछ तो ब्राह्मण भक्त है, जो कि अन्धश्रद्धा और . रूढ़ियों के चंगुल में फंसी हुई है। कुछ श्रमण भक्त है, जो कि 'सुधारक है जातिवाद के आक्रमण से जो पीड़ित हैं वे लोग भी श्रमणों की तरफ झुक रहें हैं । कुछ लोग दोनों को मानते हैं । पर झुकाव श्रमणों की तरफ बढ़ रहा है।
... ब्राह्मणों में भी ऐस विचारक है जो ब्राह्मणों की दूकानदारी से ऊब गये हैं पर बहुत कम हैं । क्षत्रिया में श्रमणों का प्रभाव आधिक हैं, आधेकतर श्रमण क्षत्रिय ही है फिर भी क्षत्रियों के द्वारा श्रमण संताय जाते हैं । इसका एक कारण यह है कि हर एक राजा अपने गुप्तचर को श्रमण का वेष देता है। गुप्तचरों को श्रमण वेष में कुछ सुभीता होता है पर यह ब्राह्मणों का षड्यंत्र भी है। आजकल राजाओं के यहां मंत्री और पुरोहित अधिकसर ब्राह्मण ही होते हैं, वे श्रमणों को बदनाम करने के लिये भी गुप्तचरों को श्रमण का वेष देते हैं । फल यह हुआ है श्रमण लोग राजयुरूपों के द्वारा अनावश्यक रूप में भी सताये जाते हैं। इस