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________________ १४४] महानार का अन्तस्तल में फैले हुए हैं, और इन मूढ़तापूर्ण विश्वासों को टिकाये रखने का काम कर रहे हैं चदिक ब्राह्मण, क्योंकि इस बहाने से उन्हें पर्याप्त से अधिक भेट पूजा मिलती है। अपनी इसी भेट पूजा के लिये भोघजीवी बनकर ये लोग जनता को कुमार्गस्थ किये हुए। हैं। मुझे इन अन्धश्रद्धाओं के विरोध में एक पूरी और व्यवस्थित योजना का निर्माण करना पड़ेगा । सुसमें मैं कितना तथ्य रख सागा यह तो बाज नहीं कह सकता पर इसमें सन्देह नहीं कि उसमें सत्य पर्याप्त होगा । जनता की वञ्चना अससे रुकेगी और उससे रुकेंगे और सैकड़ों अनर्थ भी। . ___ इतने में आया गोशाल । बोला-बहुत सुन्दर नगर हैं प्रभु! मैंने अपेक्षा से कहा-अच्छा। वह बोला-जब आप आहार के लिये जायेंगे तब देखकर कहेंगे कि मैं ठीक कहता था। .. मैंने कहा-पर मुझे आज आहार नहीं करना है, मेरा उपवास है। . . . . . . . . गोशाल-पर मुझे तो बड़ी भूख लगी है । मैं तो भिक्षा के लिये जाऊंगा। ... मैंने कहा-अवश्य जाओ ! पर इस बात का ध्यान रखना कि स्वाद के लोभ में कहीं नरमांस न खाजाओ। गोशाल-ऐसा कैसे होगा प्रभु, मैं उस घर में जाऊंगा ही. महीं. जहां मांस की गन्ध भी आती होगी ।..... .. मैंने कहा-अच्छी बात है, फिर भी सम्हलकर रहना। - थोड़ी देर बाद गोशाल भिक्षा के लिये नगर की तरफ चलागया । मैं इस टोटके की यात पर विचार करता रहा । रह. . .
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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