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रह कर यही बयान में आती रही कि आज ये ज्योतिषी लोग अपनी जीविका के लिये जैसे वीभत्स कृत्य कराते हैं, उनका A. ठिकाना नहीं ।
महावीर का अन्तस्तल
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सोचता हूँ किं अगर गोशाल को यह बात मालूम होगी तो वह खूब उपद्रव करेगा, पर उस चालाक ज्योतिपी ने इस यात का ध्यान पहिले से ही रक्खा है। इसलिये उसने कहा था । कि बाहर के साधु को आहार देना, और सम्भवतः बाहर के साधु को भी पता लगजाय तो तुरन्त घर बदलने की बात है । इस प्रकार उपद्रव से बचने की पूरी सतर्कता रक्खी गई है। खेद है कि ये पण्डित लोग पाप कराने में जितने सतर्क रहते हैं उतने सत्य में नहीं रहते । अगर रहत तो उनका भी भला होता और जनता का भी भला होता 1
दो मुहूर्त में गोशाल भोजन करके आगया । भोजन को और भोजन करानेवाली सेठानी की बड़ी प्रशंसा करने लगा | बोला- आज तक न तो इतने आदर से मुझे किसी ने भोजन कराया न इतना स्वादिष्ट भोजन मिला !..
मैंने कहा- खूब स्वादिष्ट खीर खाई है न ? बोला- हां !
मैंने कहा- उसमें खूत्र मधु भी पड़ा था । बोला- हां !
थे।
मैंने कहा- और एलची वगैरह मसाले भी खूब
बोला- जी हां ! बिलकुल ठीक। आप से यह सब किसने कहा ?"
मैंने उसकी बात अनसुनी करके कहा और सेठानी कर नाम श्रीभद्रा था न १