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महावीर का अन्तस्तल
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सम्भवतः यह मूत्रता जन्मसिद्ध है। छोटे बच्चों में यह वृत्ति पाई जाती है कि जब उन्हें कोई लकड़ी या पत्थर लगजाता है तब वे लकी पत्थर को पीटने लगते हैं। वे सोचते हैं कि जैसे हम जानबूझ कर ऊधम करते हैं और मार से डरते हैं उसी प्रकार लकड़ी पत्थर भी डरते होंगे ।
बाल्यावस्था की यह मूढ़ता किसी न किसी रूपमें साधारण मनुष्य में जन्मभर बनी रहती है और ज्योतिषी लोग जनता की इस मूह मनोवृत्ति का उपयोग कर धनधान्य कमाते हैं कैसा भद्दा व्यापार है यह !
पर किस किसको दोष दिया जाय ? बड़े बड़े विद्वान भी अपनी विद्वत्ता वुद्धिमता का उपयोग इसी मार्ग में करते हैं । - इसी आधार पर यहां ब्रह्माद्वैत दर्शन खड़ा होग्या है जो कहता है कि संसार का प्रत्येक पदार्थ प्रत्येक परमाणु तक सूत्र में सचेतन है अर्थात वह अनुभव को की शार्क रखना है । यह बालमनोवृत्ति ही एकान्तवाद के आधार पर विकसित होकर ब्रह्माद्वैन दर्शन नगई। खैर, दार्शनिक क्षेत्र में अनेकान्त दृष्टि से कुत्र नये विचार तो मैं जगत् को दूगा ही, पर सब से अधिक अ श्यक है इस प्रकार के टोन टोटकों को निर्मूल करना । मग्ना क्या है ? मरने के बाद आत्मा किस प्रकार तुरंत दूसरे शरीर में चला जाता है, पुराने शरीर में असका कोई सम्बन्ध नहीं रहता, न मग शरीर कुछ अनुभव करता है आदि वात दुनिया को सिखाना होगी ।
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आत्मा मरने के बाद शरीर के आसपास घूमता रहता है, घर में घूमता रहता है, श्मशान में घूमता रहता है, या अंतरीक्ष में चकराता रहता है या दूसरे शरीर की घाट देखता हुआ यमपुरी में बैठा रहता है, या पितृलोक जाकर अपने वेटों की भेंट खाता रहता है, इस प्रकार के न जाने कितने अन्धविश्वास समाज