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. वालों की अनुमति लेकर ही गृहत्याग करूंगा, ऐसी हालत में पत्नी की अनुमति के लिये उनके मनपर क्या बीतती होगी, इसका कोई चित्रण जैन शास्त्रों में नहीं है। पत्नी से तो अनुमीत लेने की भी बात नहीं है जो आवश्यक है, मर्मस्पर्शी है। मैंने इस मानसिक द्वन्द को काफी विस्तार से मनोवैज्ञानिकता के आधार पर लिखा है। इसमें पति पत्नी का व्यक्तित्व निखरा है, अपनी अपनी दृष्टि से महान बना है और स्वाभाविक भी रहा है।
इसीप्रकार भाई भौजाई आदि के साथ भी उनकी बातचीत का चित्रण किया है । इसी तरह जब वे अर्हत होकर जन्मभूमि लौटे हैं तब भी पुत्री के मुंह से पत्नी-मरण का समाचार ढंग से कहलाया है। और भी जहां जहां आवश्यक मालूम हुआ शून्यता को उचित ढंग से भरा है।
७-दो चार जगह ऐसी घटनाओं का भी चित्रण किया है जो कि महावीर की विचारधारा के अनुकूल रही है और उनकी विचारधारा की सार्थकता बताती रही हैं । जैसे अनेकांत की सार्थकता ताने लिये राजगृह में चार पंडितों की कथा।
इसप्रकार अधिकांश (८० फीसदी से भी अधिक) जीवन सामग्री जैन शास्त्रों से मिली है, कुछ खाली जगह मैंने भरी है। हां ! सव सामग्री का सुसंस्कार करके उसे सत्य और विश्वसनीय रूप मैंने दिया है, इससे महावीर जीवन की उपयोगिता काफी चढ़ी है ३- महावीर जीवन और जैनधर्म
कोई भी संस्था, खासकर धर्म संस्था, किसी महान व्यक्ति के जीवन की फली हुई छाया है । इसलिये जैन धर्म