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३ - जो घटनाएँ वास्तविक तो मालूम हुई परन्तु उनमें अवास्तविकता का इतना मिश्रण मालूम हुआ कि वह विश्वसनीय नहीं रहीं उसे ठीक रूपमें सुधार दिया है । जैसे चण्डकौशिक सर्पवाली घटना |
४ -- जिन साधारण घटनाओं को देवताओं के साथ जोड़ दिया गया है, उन्हें मानुषीय रूप देदिया है। इससे वे घटनाएं स्वाभाविक और सम्भव मालूम होने लगी है और इससे महावीर स्वामी के व्यक्तित्व को कोई धक्का नहीं लगा है बल्कि विशेष रूपमें चमका है ।
५- जो घटनाएं अवधिज्ञान केवलज्ञान के अलोकिक अविश्वसनीय रूप के आधार पर चित्रण की गई थीं उन्हें प्रतिभा तर्क सूक्ष्मावलोकन आदि के आधार पर चित्रित किया गया है । इससे घटनाएं संभव और स्वाभाविक नगई हैं ।
६ - कहीं कहीं खटकनेवाली शून्यता को उचित कल्पनाओं से भर दिया है। जैसे महावरि के अनेक वर्षों तक दाम्पत्य जीवन में रहने पर भी, एक सन्तान के पिता होजाने पर भी, उनके दाम्पत्य जीवन का, पत्नी के साथ उनकी कोई बातचीत प्रेम या प्रेम संघर्ष का, जरा भी उल्लेख न होना खटकनेवाली शून्यता है । मैंने उसे कल्पित चित्रणों और वार्तालापों से भर दिया है। इसमें इस बात का ध्यान जरूर रक्खा है कि इससे महावीर के व्यक्तित्व को क्षति न पहुँचे, चित्रण उनके स्वभाव के विरुद्ध न हो, उनकी जीवन चर्या से मेल बैठाने वाला हो ।
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म. महावरि गृहस्थोचित कर्तव्य का निर्वाह करते हुए भी घर में ही वैरागी सरीखे रहे, यहां तक कि साधु सरीखे तर त्याग भी करने लगे, उनने गृहत्याग का संकल्प भी बहुत पहिल घोषित कर दिया था ऐसी हालत में उनकी पत्नी के मन पर क्या बीतती होगी, इधर महावीर का यह नियम था कि घर