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महाबीर का अन्तम्तल
मालुम होती, दाहिना मार्ग ही अधिक चलता है इसका कारण
क्या ?
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छोटे बालक एक दूसरे का मुँह ताकने लगे, पर उनमें से एक बड़ा चालक बोला-बायें हाथ की पगडंडी में बड़ा संकट देवार्य इस पथ एक भयंकर नांग मिलता है जो पायकों को काट खाता है । इसप्रकार कई पथिकों को वह मार चुका है इस. लिये यह पंथ बहुत चलता नहीं है ।
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सोचने के लिये मैं क्षणभर रुका फिर उसी पगडंडी की सरफ मुड़ा ।
पर बड़ा बालक बोला- आप देवार्य उस पथ से न जायँ, . कुछ देर तो लगेगी पर दाहिना मार्ग ही पकड़े ! नागराज के कोप से बचें।
मैंने कहा - चिन्ता न कर बच्चे, नागराज अहिंसक का कुछ नहीं बिगाड़ सकते ।
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यह कहकर मैं उसी संकटापन्न मार्ग से आगे बढा । अपनी अहिंसा की परीक्षा का यह शुभ अवसर छोड़ना मैंने उचित नहीं समझा । मनुष्य के बारे में संदेह रह सकता है कि आसा का प्रयोग सफल होगा या नहीं, क्योंकि मनुष्य इतना चक्र है कि उसकी मनोवृत्ति का पता लगाना कठिन है पर मनुष्येतर प्राणियों के बारे में अहिंसा के प्रयोग सरलता से किये जासकते हैं | अगर हम अहिंसक होकर वीतराग मुद्रा से रहे तो जानबूझकर कोई मनुष्येतर प्राणी हमें न सतायगा । व्याघ्रादि जिन पशुओं के लिये मनुष्य भक्ष्य है उनकी वांत दूसरी है। पर चें भी मनुष्य को तभी खाते हैं जब बहुत भूखे हो और दूसरा मिल न सकता हो । वाकी जिनके लिये मनुष्य भक्ष्य नहीं हैं वे अहिंसक मनुष्य को कभी नहीं छेड़ते । सर्प के लिये मनुष्य