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भक्ष्य नहीं हैं इसलिये अहिंसा के द्वारा सर्प से बचना सरल 흄 हां ! कोई कोई सर्प होते हैं जो दौड़कर भी मनुष्य को काटते हैं । यह नागगज भी ऐसा ही मालम होता है । पर इस आक मण का कारण भी भ्रमवश शत्रुता की कल्पना है । सच्चा अहि: सक अपनी मुद्दा से सर्प के मन में यह कल्पना भी पैदा नहीं करने देता है । भय भी वैर की निशानी है । हां ! अशक्तिपूर्ण वैर को निशानी है इसलिये अहिंसक भय भी नहीं रखता ।
महावीर का अन्तस्तल
अहिंसा के बारे में जो मेरे ये विचार है उन्हें आजमाने का यह अवसर जानकर मैं आगे बढ़ा। हां ! ईयसमिति मे आगे बढ़ा । अहिंसा की परीक्षा में ईर्या समिति अर्थात् देख देख कर चलना जरुरी है। क्योंकि मन अहिंसकता रहनेपर भी अगर अजानकारी से किसी जन्नुपर पैर पहजाय तो वह उसे श्राक्रमण ही समझकर प्रत्याक्रमण करेगा । इसप्रकार अहिंसा की साधना निष्फल जायगी । प्रमाद भी अहिंसा की साधना को नष्ट कर देना है |
थांडी दूर जानेपर दर से ही मुझे वह सर्प दिखाई दिया । अकस्मात् की बात कि वह मेरी तरफ ही आरहा था । ऐसी हालत में यह बिलकुल स्वाभाविक था कि मुझे अपनी तरफ आता देखकर वह भ्रम से मुझे शत्रु समझने इसलिये मैंने उसकी तरफ जाना ठीक न समझा | अगर मैं पीछे लौटता तो वह मुझे डरपोक शत्रु समझता तत्र मेरा जीना मुश्किल होजाता । क्योंकि प्राणी सबल की अपेक्षा निर्वलपर अधिक जोर करता है। निर्बल के आगे उसका आत्माभिमान युद्दण्ड होजाता है।
विचारों से न मैं आगे बढ़ा, न पीछे हटा,
sa इन सब किनारे ध्यान लगाकर खड़ा होगया ।
सर्प आया, मुझे देखा और फंण उठाकर खड़ा होगया !