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है, आपकी साधुता असीम है । लगता है मेरी क्रूरता को जीतने के लिये ही आज आपकी समता का अक्षय सागर उमड़ आया है । प्रभो ! मैं हार गया, मेरी दुष्टता, दानवता क्षमा चाहती है । प्रभु की करूणा सभर प्रांखों में से निकला एक कृपा किरण शूलपाणि के अंतरा को प्रकाश दे गया । शूलपाणि प्रभु के शरणचरण में झुक गया, वात्सल्य का प्रेमी वन गया । उस दिन से शूलपाणि यक्ष के श्राप से अस्थिक ग्राम मुक्त हुआ था ।
उ.
म १०३ म. स्वामी को स्वप्न किस अवस्था में आये थे ? शूलपाणि यक्षों के उपसर्ग के सामने अपूर्व संघर्ष में शारीरिक एवं मानसिक श्रम के कारण श्लथ महावीर की आँखों में भी नींद की क्षणिक झपकी श्रा गई और उसी झपकी में उन्होंने स्वप्न देखे ।
प्र. १०४ म. स्वामी को कितने स्वप्न आये थे ? दश ।
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प्र. १०५ म. स्वामी को कौन-कौन से स्वप्न ग्राये थे ? (१) अपने हाथों से ताल पिशाच को मारना ।
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