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( ५८ ) पड़ा। उसने घर-घर में रोग, पीड़ा, त्रास एवं भय का आतंक फैला दिया। सैकड़ों मानवी मृत्यु के मुख में जाने लगे। बजारों में जहाँ देखो हड़ियों का ढेर पड़ा था। हजारों तर कंकाल पड़े सड़ते थे। जिन पर गिद्ध मंडराया करते थे। कौन किसको उठाये ? कौन किसको जलाये ? शबों की दुर्गध से सारा ग्राम त्राहीत्राही हो गया। इसी कारण से ग्राम लोगों ने
इनका नाम अस्थिक ग्राम रखा था। प्र. ६८ ग्राम लोगों ने शूलपाणि यक्ष के उपद्रव से.
वचने के लिए क्या किया था ? ग्राम लोगों ने अनेक देव-यक्ष-असुर-गंधर्व आदि की पूजा की; मगर गाँव का आतंक नहीं मिटा । घबराकर लोग गाँव छोड़कर चले गये। तव भी यक्ष ने पिण्ड नहीं छोड़ा। लोग पुनः ग्राम में लौटकर आये और नगर देवता को बलि देकर सबने क्षमा मांगी। 'हमारा अपराध क्षमा करिये ! हम आपकी शरण में हैं, जो कुछ भी हमारी भूल हुई है, उसे प्रकट कीजिये।"