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गाँव के लोगों ने व्यापारी से 'बैल की सेवा के लिए धन तो ले लिया, पर बेचारे बैल की कभी किसी ने संभाल नहीं की। सारा धन हजम कर गये। उधर भूखे-प्यासे संतप्त बैल ने एक दिन दम तोड़ दिया। वही बैल मरकर
शूलपाणि यक्ष बना। 'प्र. ६६ शूलपाणि यक्ष ने उत्पन्न होते ही क्या
किया था ? उत्पन्न होते ही पूर्व भव का वैर याद आया । उसने दांत पीसकर कहा-"पैसे के प्रेमी विश्वासघाती! अव देख लो इसका कर अंजाम।" मेरे सार्थपति से मेरी देखभाल के लिए पैसे तो ले लिये, लेकिन तुमलोगों ने मुझे खाना पीना तक नहीं दिया। न मेरी किसी तरह संभाल की। अच्छा ! अब भोगो उस
वैर का दारूण विपाक । प्र. ६७ अस्थिक ग्राम ऐसा नाम क्यों रखा गया था ?
गाँव के लोगों द्वारा की गई अपनी दुर्दशा को देखकर शूलपाणि यक्ष क्रोधित हो गया। के दारूण विपाक से महाकाल .
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