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एक दिन कुलपति स्वयं महावीर के निकट प्राया और कहा - " कुमार ! यह क्या ? एक पक्षी भी अपने घोंसले के लिए जी जान लगा देता है, तुम क्षत्रियेपुत्र होकर भी अपने ग्राश्रय स्थान की रक्षा नहीं कर सकते ?"
उ.
श्राश्रमवासियों की वृत्ति प्रौर कुलपति के कथन ने महावीर के मन को झकझोर डाला । जिसने देह का मांस और खून चूसते भ्रमर आदि कीट-पतंगों को भी नहीं उड़ाया; उसे झोपड़ी की रक्षा का उपदेश कितना हास्यास्पद था । महावीर को लगा उनकी उपस्थिति श्राश्रमवासियों की ग्रप्रीति का कारण वन रही है । सवका प्रेम-क्षेम चाहनेवाले महावीर ने वहाँ रहना इष्ट नहीं समझा। वर्षाकाल के पन्द्रह दिन बीत जाने पर महावीर वहाँ से प्रस्थान कर कहीं अन्यत्र चल दिये ।
प्र. ८६ म. स्वामी चातुर्मास में विहार कर कहाँ
पधारे थे ?
अस्थिक ग्राम में ।