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'झोपड़ी की रक्षा करते थे। उस आश्रम में महावीर ही एक ऐसे साधक थे जो सतत ध्यान में लीन होकर खड़े रहते, उन्हें अपनी देह रक्षा का भी कोई ध्यान नहीं था, तब झोंपड़ी की रक्षा कैसे करते ? तापस महावीर को संकेत कर कहते-"गायें झोपड़ी को खा रही हैं, आप किस ध्यान में लीन हैं ?" इस प्रकार
उपसर्ग आया था। अ. ८८ म. स्वामी ने प्रथम चालु चातुर्मास में क्यों
विहार किया था ? महावीर ने तापसो के कहने पर कभी ध्यान नहीं दिया। तब वे आश्रम के कुलपति के 'पास शिकायत लेकर पहुंचे-"आपने किसको
आश्रम में ठहरा दिया है ? हमलोग गायों को 'भगाते दिनभर परेशान होते हैं और वह कभी अपनी झोंपड़ी की रक्षा के लिए एक हांक भी नहीं मारता. इस तपस्वी की लापरवाही के कारण गायों का झुण्ड बार-बार उधर घुस जाता है और आश्रम की झोंपड़ियों पर टूट पड़ता है, हमारी नाक में दम आ गई है, उसकी झोपड़ी वचाते बचाते ।"