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ज्ञान प्राप्त करें । साधना तो स्वयं के बल वीर्य एवं पुरुषार्थ के सहारे ही होती है और स्व- बल पर चलने वाला साधक ही केवल ज्ञान एवं निर्वारण- सिद्ध को प्राप्त कर सकता है ।"
उ.
प्र. ८५ म. स्वामी ने प्रथम चातुर्मास कहाँ किया था ? मोराक सन्निवेशान्तर्गत दुईज्जनक नामक तापसो के आश्रम में और अस्थिक ग्राम में ।
प्र. ८६ म. स्वामी को प्रथम चातुर्मास में किसके उपसर्ग आये थे ?
गायों का और शूलपाणी यक्ष का ।
म. स्वामी को प्रथम चातुर्मास में उपसर्ग कैसे आया था ?
उ.
प्र. ८७
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उस प्रदेश में दूर-दूर तक ग्रकाल की छाया मंडराई हुई थी । वर्षा न होने के कारण कहीं घास-फूस भी नहीं दिखाई देता था । आश्रम में तृण की झोंपड़ियां बनी हुई थी। प्रभु महावीर को भी एक ऐसी झोंपड़ी रहने के लिए दी थी । भूखे-प्यासे पशु श्राश्रम की झोंपड़ियों की घास उखाड़कर निगलने लगे । आश्रमवासी तापस दण्ड' लेकर इधर-उधर घूमते और अपनी