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________________ ( ५२ ) ज्ञान प्राप्त करें । साधना तो स्वयं के बल वीर्य एवं पुरुषार्थ के सहारे ही होती है और स्व- बल पर चलने वाला साधक ही केवल ज्ञान एवं निर्वारण- सिद्ध को प्राप्त कर सकता है ।" उ. प्र. ८५ म. स्वामी ने प्रथम चातुर्मास कहाँ किया था ? मोराक सन्निवेशान्तर्गत दुईज्जनक नामक तापसो के आश्रम में और अस्थिक ग्राम में । प्र. ८६ म. स्वामी को प्रथम चातुर्मास में किसके उपसर्ग आये थे ? गायों का और शूलपाणी यक्ष का । म. स्वामी को प्रथम चातुर्मास में उपसर्ग कैसे आया था ? उ. प्र. ८७ उ, 4 उस प्रदेश में दूर-दूर तक ग्रकाल की छाया मंडराई हुई थी । वर्षा न होने के कारण कहीं घास-फूस भी नहीं दिखाई देता था । आश्रम में तृण की झोंपड़ियां बनी हुई थी। प्रभु महावीर को भी एक ऐसी झोंपड़ी रहने के लिए दी थी । भूखे-प्यासे पशु श्राश्रम की झोंपड़ियों की घास उखाड़कर निगलने लगे । आश्रमवासी तापस दण्ड' लेकर इधर-उधर घूमते और अपनी
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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