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( १५ ) २१ क्षीर समुद्र- अपार गंभीरता एवं मधु-
रता का समन्वय करने
वाला होगा। १२ देवविमान- दिव्य देहयस्टि युक्त तथा
देवों में भी पूजनीय होगा। १३ रत्न राशि--- समस्त गुण रूप रत्नों का
समूह होगा। १४ निर्धू म अग्नि-क्रूरता आदि दोषों से मुक्त
असाधारण तेजस्विता से
सम्पन्न होगा। प्र. २४ म. स्वामी की द्वितीय माता त्रिशला का गर्भ
- काल कितना था ? उ ६ मास १५ दिन । प्र. २५ म. स्वामी की प्रथम माता देवानंदा का गर्भ
काल कितना था ? उ. २ मास २२।। दिन । प्रः २६ म. स्वामी की दोनों माताओं का मिलाकर
सम्पूर्ण गर्भकाल कितना था ? उ. मास ७।। दिन । .
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