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प्र. ४६७ म. स्वामी के निकट गौशालक ने आकर क्या
किया ?
गौशालक अपने आजीवक भिक्षु संघ के साथ महावीर के समक्ष उद्धतता पूर्वक आकर खड़ा हो गया। क्षराभर चुप रहकर वह बोला--- "काश्यप ! क्या खूब कहा तुमने भी ! मैं गौशालक मंखलिपुत्र हूँ ? तुम्हारा शिष्य हूं? वाह ! वाह !! कितना अंधेर है ! सर्वज्ञ होकर भी तुम तो कुछ नहीं जानते ! यही है तुम्हारी सर्वज्ञता ? तुम्हारा शिष्य मंखलि गौशालक तो कभीका परलोक सिधार गया है। "गौशालक के इस शरीर में मैं उदायी कुण्डियायन धर्मप्रवर्तक की आत्मा हूँ। मेरा यह सातवां शरीरान्तर प्रवेश है। पर तुम्हें अव तक कुछ पता ही नहीं ! काश्यप ! अब तुम्हें पता चल गया न? मैं गौशालक नहीं, किन्तु गौशालक शरीरधारी उदायी
कुण्डियायन हूँ।" प्र. ४६८ म. स्वामी ने गौशालक से क्या कहा था ? उ. गौशालक को यों निर्लज्जता पूर्वक बकवास
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