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________________ ( २६१ ) कहीं। फिर अानन्द ने पूछा-"भंते ! क्या गौशालक अपने तपस्तेज से किसी को भस्म कर सकता है ?" प्र. ४६५ म. स्वामी ने आनन्द अरणगार से क्या कहा था ? उ. "आनन्द ! गौशालक अपनी तेजःशक्ति से किसी को भी भस्मसात कर सकता है, किन्तु उसकी तेजः शक्ति किसो तीर्थकर को नहीं जला सकती।" "अानन्द ! तुम गौशालक के आगमन की सूचना गौतम आदि मुनिवरों को दे दो। इस समय वह द्वप, मात्सर्य एवं म्लेच्छभाव से अाक्रांत है, वह मुंह से कुछ भी ऊलूलजलूल कह सकता है अतः कोई भी श्रमण उसका प्रतिवाद न करे। प्रोधाविष्ट नर यक्षाविष्ट जैसा होता है, इसलिए, कोई भी श्रमण, गौशालक के साथ किसी प्रकार की चर्चा-वार्ता न करे।" प्र. ४६६ म.स्वामी के कथन को सुनकर मानन्द अरणगार ने क्या किया? उ. भगवान महावीर का सन्देश समस्त मुनि मण्डल तक पहुंचा दिया। .
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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