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साध्वी चन्दवाला की प्रताड़ना को समता भाव से सहकर वह ग्रात्म-स्वरूप में रमण करने लगी । परिणामतः केवलज्ञान प्राप्त हो गया ।
प. ४५६ साध्वी चन्दनवाला को केवलज्ञान कब प्राप्त
उ.
उ.
हुआ था ?
रात्रि के समय साध्वी चन्दनवाला विश्राम कर रही थी । उनके हाथ के पास सर्प को देखकर साध्वी मृगावती ने चन्दनबाला को सर्प की जानकारी दी । तव चन्दनवाला ने पूछा- आपको सर्प को जानकारी कैसे हुई ? इसपर मृगावतीजी ने कहा - यापकी कृपा से उस समय साध्वा चन्दनवाला को ज्ञात हुआ कि केवलज्ञान प्राप्त साध्वी मृगावतो जी का अपमान किया था । अतः वे पश्चात्ताप करती हुई ग्रात्म-स्वरूप में रमण करने लगो । भावों की निर्मलता से उन्हें उसी समय केवलज्ञान प्राप्त हो गया ।
प्र. ४५७ म. स्वामा कौशंबी से विहार कर कहाँ
पधारे थे ?
काशी होते हुए मगध देश की ओर ।
उ.