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प्र. ४५० म. स्वामी वत्सदेश में कहाँ पधारे थे ? उ. कौशंवी नगर में । प्र. ४५१ म. स्वामी के वंदनार्थ कौन-कौन ज्योतिषी
देव आये थे ? प्रभु कौशंबी नगर के बाहर उद्यान में समवसरण में विराजमान थे तब सूर्य-चन्द्र
अपने मूल स्वरूप में प्रभुके वेदनार्थ पाये थे। प्र. ४५१ सूर्य-चन्द्र के प्रकाश से कौन विश्रत हुई थी? उ. साध्वी मृगावती । प. ४५३ विथ त साध्वी मृगावती को किसने डांटा था ?
उ, साध्वी चन्दनबाला ने । _प ४५४ साध्वी मृगावती को चन्दनबाला ने क्यों डांटा ?
साध्वी मृगावती भ. महावीर के पास विराजमान थी, तव सूर्य-चन्द्र अपने प्रकाशित मूल स्वरूप में वंदनार्थ आये थे। उस समय मृगावतीजी दिन है या रात के सम्बन्ध में विश्र त हुई थी। रात्रि में अपने स्थान पर जाते हुए गुरुणी साध्वी चन्दनवाला ने
उन्हें डांटा था । * . ४५५ साध्वी मृगावतीको केवलज्ञान कब पाप्त हुआ था?