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आप हम अप्सराओं के साथ मन-इच्छित क्रीड़ायें करते हुए स्वर्ग के सुख को भोगिए ।" रोहिणेय विस्मय के साथ सब कुछ देख रहा था। तभी एक देव-वेषधारी आया, नमस्कार पूर्वक बोला-"स्वर्ग में आपके अवतरण पर वधाई। यहाँ की विधि के अनुसार प्रत्येक नव उत्पन्न देव को सर्वप्रथम अपने पूर्व-जन्म की सुकृत-दुष्कृत की कथा सुनानी पड़ती है। कृपया आप भी हमें बताइये आपने पूर्व-जन्म में क्या-क्या पुण्य किये थे, जिनके प्रभाव से प्राप
हमारे स्वामी बने हैं ?" प्र. ३७६ वेषधारी देवकी बात सुनकर रोहिणेय ने क्या
किया था ? वह अपने सुकृत-दुष्कृत, पुण्य-पाप का स्मरण करने लगा। उसने तो जन्म-भर चोरियाँ की थीं, कभी कोई पुण्य कार्य तो किया नहीं। वह अपने पूर्व जन्म के दुष्कृत अध्याय को शुरू करने ही वाला था कि उसे सहसा भगवान महावीर की वाणी याद आ गई। "देवता के चरण पृथ्वी को नहीं छूते।" उसने