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गृहस्थी के अनुरूप बहुत अल्प सामान के साथ रहता था। रोज पूणो कातना तथा वेचना और जो मिले उससे जीविका निर्वाह कर संतुष्ट
रहना। उसकी दैनिक चर्या थी-नियमित .. सामायिक-स्वाध्याय करना । प्र. ३२६ महाराजा श्रेणिक के आगमन पर पूरिणया
ने क्या किया था ? मगधपति श्रेणिक को अपने आवास पर उपस्थित देखकर पूणिया श्रावक ने प्रसन्नता के साथ स्वागत किया और पूछा-"मैं आपकी
क्या सेवा कर सकता हूँ ?" प्र. ३३० महाराजा श्रेणिक ने पूणिया से क्या कहा था?
श्रोणिक ने कहा-'सेवा तो मैं तुम्हारी करूंगा। तुम मेरा एक कार्य कर दो। बड़ा उपकार मानूंगा। वस, तुम्हारो एक सामा. यिक मुझे चाहिये । जो भी मूल्य चाहो, वह ले लो। लाख, दस लाख-जो मन में हो;
बस एक सामायिक दे दो! प्रे. ३३१ महाराजा थेगिक की बात सुनकर पूणिया ने
क्या कहा था ?
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