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गया हो। 'भंते ! क्या आपकी उपासना का यही फल मिलता है ?" धैर्य का बांध टूटते ही
श्रेणिक के उद्विग्नतामय उद्गार निकले । प्र. ३२४ म. स्वामी ने श्रेणिक को धैर्य बंधाते हुए क्या
कहा था ? 'राजन् ! ऐसा नहीं है। मेरे सम्पर्क में आने से पूर्व तुमने क्रूरतापूर्वक अनेक प्राणियों की हिंसा की थी। इस कारण से तुमने नरकायुष्य बाँध लिया है। मेरी उपासना का फल तो यह है कि नरक से मुक्त होकर आगामी चौवीसी में तुम मुझ जैसे ही पद्मनाभ नामक प्रथम
तीर्थकर बनोगे।" प्र. ३२५ म, स्वामी द्वारा अपने तीर्थंकर भव की बात
सुनकर श्रेणिक को क्या अनुभव हुआ था? श्रेणिक का विषाद हर्ष में बदल गया। तीर्थकर पद की अपार गरिमा और चरम श्रेष्ठता के समक्ष उसे नरक की यातना तो तुच्छ एवं क्षणिक-सी प्रतीत हुई। फिर भी उसने नरक
गमन को टालने की युक्ति प्रभु से पूछी। ३२६ म. स्वामी ने श्रेणिक को नरक-गमन टालने
के क्या उपाय बताये थे ?