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( २४७) "अर्जुन ! घबराओं नहीं ! तुम भी मनुष्य हो। तुम्हारे रक्त में दानवता के संस्कार प्रविष्ट हो गये थे, इसी कारण तुमने सैकड़ों निरपराध प्राणियों की हत्या करडाली, अब तुम प्रबुद्ध हो गये हो, तुम्हारे दानवीय संस्कारों में परिवर्तन आ गया है, चलो, मैं तुम्हें हमारे कल्याणद्रष्टा देवाधिदेव के पास ले चलू।" अर्जुन सुदर्शन के साथ-साथ भगवान
महावीर के समक्ष आया। प्रे. ३०६ म. स्वामी के उपदेश से अर्जुन को क्या हुया था? उ. करुणासिंधु महावीर के हृदयग्राही उपदेश
से अर्जुन के रक्त की दानवीय ऊष्मा शांत हुई, करुणा को रसधारा फूट पड़ी। पश्चात्ताप के प्रांसू बहाकर उसने प्रभु के समक्ष प्रायश्चित्त किया और उसी क्षण कठोर मुनिचर्या स्वीकार
कर ली। प्र. ३१० अर्जुन मुनि को देखकर लोगों ने क्या
किया था ? अर्जुन मुनि को देखकर लोग आवेश व क्रोध में श्रा जाते ।" "यही है हमारे प्रिय स्वजन