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वह प्रभु के समवसरण में जा पहुंचा था । वंदना नमस्कार कर उसने प्रभु का उपदेश सुना, तत्त्व - चर्चा की ।
प्र. २८४ म. स्वामी का उपदेश सुनकर पुद्गल परि-व्राजक को क्या हुआ था ।
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उसके अज्ञान की ग्रन्थी खुल गई, संशय छिन्न में हो गया, और सत्य की दिव्य आभा हृदय चमक उठी । उसकी सत्य - श्रद्धा का वेग इतना प्रबल था कि वह अपने दंड कमंडलादि समस्त. बाह्य परिवेश का त्याग कर भगवान का शिष्यः
बन गया । श्रमरण धर्म ग्रहण कर उसने ११ . अंगोका अध्ययन किया और विविध प्रकार के तपों की आराधना करता हुआ कर्म मुक्त, होकर निर्वाण को प्राप्त हुआ ।
प्र. २८५ म. स्वामी प्रलंभिका नगर से विहार करके :
कहां पधारे थे ?
राजगृह नगर में ।
प्र. २८६ म. स्वामी के राजगृह पधारने पर लोग दर्शनः के लिए क्यों नहीं आ सकते थे ?.
हजारों श्रद्धालु प्रेभुं के दर्शन करने की उत्सुकता
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