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( २१४ ) जैसे वीरों के लिए शिरःशूल बन गई ? मेघ !
प्रबुद्ध हो जानो।" प्र. १६४ म. स्वामी से मेघ मुनिने क्या कहा ?
भगवान महावीर द्वारा पूर्व भव की घटना
और उद्बोधन सुनकर मेघ की स्मृति पर से विस्मृति का पर्दा उठ गया । जातिस्मरण हुआ
और उसने देखा-अपने अतीत जीवन को। वह स्तब्ध रह गया, रोमांचित हो गया। प्रस्तर-प्रतिमा की भाँति वह शांत मौन, निचेष्ट खड़ा रहा। दो क्षण बाद जैसे ही
चेतना लौटी उसका मन प्रशांत हो गया, व्याकुलता का कोहरा हट गया और सुज्ञान का प्रकाश जगमगा उठा। वह हृदय की असीम श्रद्धा के साथ, अविचल संकल्प के साथ प्रभु के चरणों में विनत हो गया- "प्रभो! मेरी स्मृति जागृत हो गई, मेरी चेतना के आवरण दूर हो गये, मैं अपनी भूल और प्रमाद पर, अपनी विस्मृति पर पश्चात्ताप करता हूं और भविष्य के लिए अपने शरीर को ( आँखों को छोड़कर ) सर्वात्मना आपको