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________________ ( २१५ ) समर्पित करता हूं। समस्त श्रमणों की सेवा के लिए, मेरा तन, मन और जीवन अर्पित है। मैं आपके द्वारा निर्दिष्ट पथ पर बढ़ता रहूँगा,. अविचल ! अकम्पित !" प्र. १६५ म. स्वामी के पास राजगही में और किसने दीक्षा ली थी? नंदीषेणकुमार ने। प्र. १६६ नंदीषेणकुमार कौन था ? उ. मगध के अधिपति महाराजा श्रेणिक का पुत्र ।' प्र. १६७ नंदीषेण किस कला में पारंगत था ? उ. वह गज-कला में पारंगत था । सेचनक हाथी ... को जगल से पकड़ कर श्रेणिक की हस्ति शाला में लाना नंदीषेण की गजकला का अद्भुत चमत्कार था। प्र. १९८ नंदीषेण कुमार को वैराग्य कैसे पाया था? उ. प्रभु महावीर का राजगृही नगर में पधारना और मेघकुमार द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण करना। एक दिव्य प्रेरणा नंदोपेण कुमार के मन-.. मंदिर में उमड़ी और वैराग्य प्राप्त हुआ।
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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