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निकल जायेगा । अनुकम्पा से द्रवित हो तुमने अपना एक पैर ऊपर ही रोक कर रखा और तीन पैर पर ही खड़े रहे ।
दो दिन-रात बीत गये। तीसरे दिन दावानल शांत हुआ। सब प्राणी हस्ति मंडल से निकल कर जाने लगे । खरगोश भी वहाँ से निकला, स्थान खाली होने पर तुमने पैर पृथ्वी पर रखना चाहा। जैसे ही पैर नीचे किया, तुम अपना सन्तुलन नहीं संम्हाल सके । तुम तत्क्षरण धराशायी हो गये । उस अनुकम्पा जनित प्रसन्नतानुभूति के कारण गिरने के साथ प्रारण त्याग कर तुम यहाँ मगधपति श्रेणिक के पुत्र एवं धारिणी देवी के आत्मज बने हो ।
प्र. १६२ म. स्वामी द्वारा पूर्व भव की घटना सुनते हुए मेघ को क्या हुआ था ?
उ.
प्रभु महावीर की वाणी सुनते ही मेघ के सामने पूर्व भव की घटनाएँ साकार हो गईं। उसके स्मृति पट पर घटनाएँ छविमान हो उठीं। वह अपने चितन में गहरा लोन हो गया ।