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समय वाद दावानल शान्त होते ही अतीतकी स्मृति से तुमने लाभ उठाया। भविष्य को निरापद बनाने के लिए हस्ति परिवार के साथ दूर-दूर तक के प्रदेश को वृक्ष व वनस्पति रहित कर समतल कर दिया।
कुछ समय बाद वन में फिर आग भड़क उठी । वन के छोटे-बड़े असंख्य प्राणी भाग-भागकर हस्तिमंडल में आश्रय लेने लगे। तुमने भी उदारतापूर्वक सबको आश्रय दिया । सिंह
और हिरन, लोमड़ी और खरगोश, साँप और नेवले, जन्मजात शत्रु भी अपनी जान लेकर यहाँ आकर एक साथ बैठ गये। मंडल खचाखच भर गया, पैर रखने को भी खाली स्थान नहीं रहा। उस समय शरीर खुजलाने के लिये तुमने एक पैर उठाया। वापस पैर नीचे रखने लगे तो तुमने देखा-उस खाली स्थान में एक खरगोश पाकर बैठ गया है। तुम्हारे मन में अनुकम्पा की धारा वही, करुणा की लहर उठी, अगर मैंने पैर रख दिया. तो इस नन्ही-सी जान का कचूमर