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भंते ! मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ । कृपया इस रहस्य को स्पष्ट समझायें । " मेघ के मन में जिज्ञासा के अंकूर फूटने लगे ।
प्र. १८१ म. स्वामीने मेघ मुनिको पूर्वभव की क्या बात: कही थी ?
उ.
"मेघ ! मैं तुम्हें सुदूर अतीत में ले चलता हूं। अतीत की स्मृति तुम्हारा सुषुप्ति को तोड़ सकेगी, तुम्हारी चेतना का दीप पुनः प्रज्वलित कर सकेगी ।" तीसरे जन्म में तुम एक सुन्दर विशालकाय हाथी के रूप में वैताढ्य पर्वतकी उपत्यकात्रों में स्वच्छंता से विहार करते थे । एक बार ग्रीष्म ऋतु में: तेज हवा के वेग से कुछ वन में ग्राग लगी । ही क्षणों में अग्नि सारे वन प्रदेश में फैल गई । अरण्य के पशु भयाकुल हो जान: बचाने के लिए दौड़े। तुम बूढ़े थे, पीछे: रह गये । भयंकर गर्मी के कारण तुम्हें: प्यास सताने लगी । पानी की खोज में तुमः दूर जा निकले, एक सरोवर दिखाई दिया । तुम पानी पीने के लिए सरोवर पर गये, पानी
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