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( २०८ )
विजय के लिए चरण बढ़ाया था, आज क्षणिक कष्ट से पीड़ित होकर वापस लौट जाना चाहते हो ! क्या यह ठीक है ?" प्र. १८८ म. स्वामी को मेघ मुनि ने क्या कहा ? "प्रभो ! श्राप सत्य कह रहे है ? रात्रि में सचमुच ही मेरी मनोदशा बदल गई । श्रमरण-जीवन को कष्टसाध्य चर्या मेरे लिये दुःसह्य: है हे प्रभु ! "
उ.
प्र. १८९ म. स्वामी ने मेघ मुनिको जागृत करने के लिये कैसे प्रतिबोध दिया था ?
उ.
"मेघ ! तुम भूल रहे हो । एक तुच्छ और क्षणिक वेदना ने तुम्हारे चैतन्य दीप को श्रावृत कर दिया। तुम अंधकार में भटक गये ?. स्मरण करो अपने अतीत को । प्रज्ञान - दशा में, पशु-योनि में सहिष्णता और तितिक्षाका जो महान संकल्प तुमने किया था, उससे तुम मानव बने और आज मानव बनकर तुम क्लोवता के शिकार हो रहे हो ?"
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प्र. १८० मेघमुनि को अतीतकी स्मृति के लिए क्या जिज्ञासा हुई थी ?