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जब सुख से सोने को भी नहीं मिला तो मैं साघु जीवन अंगीकार कर क्या खाक साधना श्रौर अध्ययन करूँगा ?" पूर्व संस्कारों की स्मृति ने मेघको आत्म विस्मृति के गर्त में डूवो दिया । उसने निश्चय कर लिया - "चाहे कुछ भी हो, मैं प्रातःकाल प्रभु महावीर से अनुमति लेकर पुनः अपने घर लौट जाऊँगा ।', प्र. १८६ मेघमुनि ने प्रातःकाल उठकर क्या किया था ? मानसिक व्यथा और विकल्पों के भंवर में डूबते-उतराते जैसे-तैसे रात्रि व्यतीत की । सूर्योदय के समय वह भगवान महावीर के चरणों में उपस्थित हुए ।
उ.
प्र. १८७ म. स्वामीने मेघमुनि को देखकर क्या कहा था? "मेघ ! कल तुम्हारा मुख प्रसन्नता से दीप्त था, आज चिन्ता से म्लान हो रहा है । कल तुम्हारी आंखों में श्रात्म जागृति का तेज था, आज विस्मृति की निद्रा व मुर्च्छा छाई हुई है । तुम्हारी ऊर्ध्वमुखी चेतना का प्रवाह आज अधोमुखी हो रहा है- तुम विकल्पों के जाल में फँस गये हो । कल तुमने उत्साह के साथ
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