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प्र. १८४ मेधकुमार को दीक्षा की प्रथम रात्रि में कैसा
अनुभव हुअा था ? प्रभु महावीर के पास जितने श्रमण थे वे सभी अपनी-अपनी दीक्षा-क्रम के अनुसार अपनी २ शय्या लगाने लगे। मेघमुनि सबसे लघु थे, उनका आखिरी कम था, प्रतः सोने का स्थान भी उन्हें सबसे अंत में द्वार के पास में हो मिला। उसी द्वार से रात्रिमें लघुशंका आदि निवारणार्थ तथा व्यान आदि के लिए मुनियोंका बाहर आना-जाना रहा। आतेजाते श्रमणों के पैरों की आहट से मेघ की नींद उचट गई, कभी-कभी अधकार में कुछ दिखाई न पड़ने के कारण मेघ के हाथ-पैरों को श्रमणों के पांवों का आघात भी लग जाता। मेघ को इस निद्रा-विक्षेप और पदाघात से बड़ी खिन्नता अनुभव हुई। श्राज दीक्षा की प्रथम रात्रि में ही यह अपशुकन ! आज ही सिर मुड़ाया और आज ही ओले पढ़े। मेघ मुनि का मन व्यथा से भर गया। आँखों की नींद उड़ गई, वह जागता रहा, पर अन्तश्चेतना मुच्छित. होने लगी। उनकी