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उ. खरक वैद्य ने प्रभुकी मुखाकृति से भांप लिया
कि प्रभु को कुछ न कुछ पीड़ा अवश्य है । प्रभुः भिक्षा ले रहे थे तब खरक वैद्य ने सूक्ष्मता से उनके शरीरका अवलोकन किया। और शीघ्रः ही पता लगा लिया कि श्रमणवर के कानों में
किसी दुष्ट ने कष्टकारक शूलें ठोंक दी हैं। प्रः ४१४ म. स्वामी के कानों में शूल है। यह बात वैद्य ने.
किससे कही थो? ऐसे महाश्रमण के तन में वेदना! मित्र! ऐसे महातपस्वी की सेवा करना ती महापुण्य का कार्य है।" "ऐसा दुष्ट, अधम कौन होगा ? जिसने प्रभु के कान में शूल ठोंककर असह्य मर्मान्तक वेदना दी है ? पर खैर, अभी तो शीघ्र ही श्रमण की चिकित्सा का प्रबंध करनाः
चाहिये।" प्र. ४१६ म. स्वामी के कानों में से शूलें किसने
निकाली थी? उ..
खरक वैद्य ने ।
खरक वद्य प्र. ४१७ म. स्वामी के कानों से शूलें कहां निकाली थी?
मध्यम पावा नगर के वाहर उद्यान में। .