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( १६८ ) "प्रे. ४१८ म. स्वामी उद्यान में क्या कर रहे थे ? उ. कायोत्सर्ग कर ध्यान में स्थिर खड़े थे। प्र. ४१६ म स्वामी के कानों से शूलें कैसे निकाली गई ? (उ. खरक वैद्यने शूले निकालने केलिये सभी साधन
जुटाये। पहले तैलादिक से महावीर के तन का मर्दनादि किया और दोनों ओर से दोनों में संडासियों से पकड़ कर कुशलता पूर्वक वे शूलें खींची। शूलों के निकलने के साथ ही रक्त की धारा छूट गई। खरक ने संरोहण औषधिका
लेपकर प्रभु के घावों को शीघ्र ही भर दिया। प्र. ४२० खरक वैद्य ने कानों में से शूलें निकाली तब
प्रभुको क्या हुआ था ? उ. शूलें निकालते समय सुमेरु सम अडोल महावीर
को भी इतनी असह्य और मर्मान्तक वेदना हुई कि उनके मुखसे एक भयंकर चीख निकल
पड़ी। प्र. ४२१ म. स्वामी के कानों में से शूलें निकाल कर
सुश्रूषा करनेवाले वैद्य एवं सेठ मृत्यु के बाद कहाँ गये थे। अच्युत् नाम के बारहवें देवलोक में।