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( १५१ ) पिताजी के पैर धोने लगी। उसके लम्बे-लम्बे सघन केश खुले हुए थे, नीचे झुकने पर वे भूमि छने लगे, तब धनावह ने सहज भाव से चन्दना. की खुली केश राशि को अपने हाथों से ऊपर उठा दिया।
प्र. ३५५ मूला सेठानी को धनावह सेठके इस व्यवहार
से कैसो कैसी शंकाएँ हुई ? उ. मूला सेठानी यह सब देख रही थी। उसकाः
पापी हृदय पाप की कल्पना में ड्व गया, चन्दना की सहज भक्ति और धनावह का यह शुद्ध स्नेहपूर्ण व्यवहार उसके हृदय में फैली दुर्भावना और आशंका की घास में आग की तरह फैल गया। उसे लगा-'सेठको वुढापे में जवानी याद आ रही है, आज जिसे पुत्री कहकर पुकारता है, कल उसे पत्नी बनाने में भी शर्म नहीं करेगा। यह पुरुष का कामी स्वभाव ही है। अतः विपवेलको बढ़ने से पहले ही उखाड़ फेंकना चाहिये, वरना यह वेटी वनकर पाई हई सपिणी मेरे सुखी-संसार को निगल जायेगी।"