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ने बन्द
वल्ट इसीके
यह मना कर
उस समय कौशंबी का कोट्याधिपति धनावह सेठ उधर से निकला। यह अजीब दृश्य देख कर वह रुका और पूछा-"क्या बात है ?" . लोगों ने कहा-"यह दासी एक लाख स्वर्णमुद्रा में बिक गई है, पर जिस गरिणका ने खरीदा है, उसके साथ जाने से यह मना कर रही है और उल्टे इसीके किन्हीं गुप्त दलालों
ने बन्दरों से गणिका को नुचवा डाला है।" प्र. ३४६ लोगों की बात सुनकर धनावह सेठ ने क्या
किया ? धनावह की सरल और पारखी नजरों ने वसुमतो को देखा तो उसकी आँखे सजल हो गई-"यह तो दासी नहीं, कोई देवकन्या है।" उसने दलालों से कहा-"रुको! सब रखो इस कन्या के साथ जबर्दस्ती मत करो! अगर यह गणिका के घर नही जाना चाहती है तो मैं इसे खरीदता हूं, एक लाख स्वर्णमुद्राएँ मैं
देता हं .......।" प्र. ३५० धनावह सेठ के खरीदने पर वसुमती ने उससे
क्या पूछा था ?