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प्र. ३४२ रथिक की पत्नी ने वसुमती के सौन्दर्य को देख . कर क्या किया था ? ।
पुराने, मैले-फटे कपड़ों में रहने और दिन भर दासी का काम करने पर भी वसुमती का स्वर्ण-कांति-सा दीप्त सौंदर्य कैसे छिप सकता था ? रथिक की पत्नी के हृदय में वसुमती का यह सौंदर्य शूल बनकर चुभने लगा। इस आशंका से वह व्यथित हो उठी कि मेरा पति. इस दासी को ही अपनी प्रियतमा बनालेगा अन्यथा चम्पा की लूट में जहाँ अन्य सैनिकों ने स्वर्ण, होरे-मोती से अपने घर भर लिए और पीढ़ियों की दरिद्रता मिटा ली, वहां इसे क्या कुबुद्धि हुई कि इस कलमही दासी को ही उठा लाया? यह तो मेरी आस्तीन का ही साँप बनकर रह रही है। इस मिथ्या
आशंका और ईष्यावश घर में पति-पत्नि में ।
, कलह शुरू हो गया। प्र. ३४३ रथिक पति-पत्नि के कलह पूर्ण वातावरण को ।
देखकर वसुमती ने क्या किया था? गृहकलह कहीं महाभारत का रूप न ले ले,