________________
आक्रोश के अंगारे भी बरसा रही थी "रथिक सावधान ! तुम्हारी नोचता ने मेरी माँ के प्राण ले लिये हैं, अगर मेरी ओर हाथ बढ़ाया तो मैं भी उसी मार्ग पर चल पड्गो और सती को कष्ट देने के घोर पाप से तुम्हारा भी
सत्यानाश हो जायेगा।" प्र. ३४० वसुमती के वचनों को सुनकर रथिक ने क्या
किया था? यह दृश्य देखते ही रथिक स्तब्ध रह गया। धारिणी के प्राणोत्सर्ग और वसुमती की ललकार ने उसके नीच हृदय को बदल दिया । वह गिड़गिड़ाता हुआ बोला-"राजकुमारी ! तुम मत डरो। मैं तुम्हें अपनी बहन मानता
हूं। चलो तुम बहन बनकर मेरे घर पर रहो।" ३४१ वसुमतो रथिक के घर पर क्या करती थी ?
वसुमती आश्वस्त होकर कौशंबी में रथिक के घर पर रहने लगी। वह भूल गई कि वह कोई राजकुमारी है । एक नौकरानी की भांति वह घर कापूरा काम करती, दिनभर व्यस्त रहती ताकिपुरानी दुःखद स्मृतियों को उभरने " का अवकाश भी न मिले ।